Wednesday 31 December 2014

कभी मेरे दर पे....

कभी मेरे दर पे तू भूलकर आता भी नहीं..

अपनी कोई दर्द भरी दास्तां सुनाता भी नहीं..

तेरे साये को भी मालूम नहीं मेरा नाम-पता,
जुबां तो है मगर तू मुझसे पूछता भी नहीं..

तू बता दे मुझे सच क्या है और झूठ क्या,
मैं क्या जानूंगी जब तू कहीं बोलता भी नहीं..

मैं सोचूं भी तो तू मुझको कहां मिलता है,
मुझे खोने के खयाल से तू डरता भी नहीं..

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