कुछ तुम को सच से नफरत थी,
कुछ हम से न बोले झूट गए,
कुछ लोगों ने उकसाया तुम्हें,
कुछ अपने मुक़द्दर फूट गए,
कुछ खुद इतने चालाक न थे,
कुछ लोग भी हम को लूट गए,
कुछ उम्मीद भी हद से ज्यादा थे,
की मेरे ख्वाब ही सारे टूट गए....
तुम नफरतों के धरने,
क़यामत तक ज़ारी रखो।
मैं मोहब्बत से इस्तीफ़ा,
मरते दम तक नहीं दूंगी।
हम मेहमान नहीं,,,
रौनक-ऐ-महफ़िल हैं...,
मुद्दतों याद रखोगे के
जिंदगी में कोई आयी थी...!!!
मैं क़तरा क़तरा फ़ना हुयी ,,
मे ज़र्रा ज़र्रा बिखर गयी ,,
ऐ ज़िन्दग़ी तुझसे मिलते मिलते ,,
मैं अपने आप से बिछड़ गयी ,,
आईना मेरे चहरे का शौकीन न हो जाये..
मुहब्बत का दरिया नमकीन न हो जाये..
बस इतना ख्याल रखना हमसफर मेरे,,
कही मेरे आँसूओं की तौहीन न हो जाये..
जहाँ चाहूँ वहाँ तुम्हे महसूस करती हूँ,
लगता है तुम भी मेरे खुदा हो गए....
इस अजनबी दुनिया में अकेली ख्वाब हूँ मैं,
सवालो से खफा छोटी सी जवाब हूँ मैं,
आँख से देखोगे तो खुश पाओगे,
दिल से पूछोगे तो दर्द की सैलाब हूँ मैं,,,,